भारत में 16 मई को होने वाली मतगणना के बाद बनने वाली नई सरकार को लेकर देश ही नहीं, बल्कि विदेश में भी काफी उत्सुकता है। नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी की सरकार बनने की संभावनाओं के कारण भी दूसरे देशों की दिलचस्पी हमारे चुनाव में बढ़ गई है।मोदी के पीएम बनने की संभावनाओं के बीच दुनिया के बड़े देशों की उनके बारे में राय बेहद अहम हो जाती है।
2002 में हुए गुजरात दंगों के बाद अमेरिका ने 2005 में मोदी को यूएस वीजा देने से इनकार कर दिया था। हालांकि, 9 साल बाद 2014 में अमेरिकी राजदूत नैंसी पावेल की मोदी से मुलाकात को अमेरिकी नीति में उनको लेकर हुए बदलाव के तौर पर देखा गया। अमेरिका यह साफ कर चुका है कि वह भारत में चुनी गई किसी भी नई सरकार के साथ मिलकर काम करने को तैयार है। जानकार मानते हैं कि अमेरिका द्वारा मोदी से बैन हटाया जाना उसकी रणनीति का अगला कदम होगा। मोदी भी पहले ही साफ कर चुके हैं कि वह विदेशी मामलों में वाजपेयी के रास्तों पर चलेंगे, जो अमेरिका पर भी लागू होता है। असल दिक्कत है, अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की दुनिया के किसी भी हिस्से में नई भागेदारी बढ़ाने को लेकर उदासीनता। देश के आर्थिक उदारीकरण के मद्देनजर अमेरिका को बेहतर रिश्तों के लिए प्राेत्साहित करना मोदी के पीएम बनने की दशा में उनके सामने बड़ी चुनौती होगी।
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